南征闺怨诗
南北朝 - 阴铿
湘水旧言深。
征客理难寻。
独愁无处道。
长悲不自禁。
逢人憎解佩。
从来懒听音。
唯当有夜鹊。
南飞似妾心。
南北朝 - 阴铿
湘水旧言深。
征客理难寻。
独愁无处道。
长悲不自禁。
逢人憎解佩。
从来懒听音。
唯当有夜鹊。
南飞似妾心。
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